Saturday 12 September, 2009

Poem

न अपनी खबर है, न दुनिया का डर है,
मगर क्यों न जाने अजब ये असर है,
किसी की हँसी से, किसी की महक से,
कही दूर से आ रही आहटों से,
मुझे ये लगे जैसे तुम आ गयी हो


बहुत देर से मैं, यूँ ही बस अकेला,
तुम्हारे खयालों में खोया हुआ हूँ
कहूँ क्या तुम्हारा दिया ये नशा है,
की जिसकी वजह से मैं सोया हुआ हूँ
कोई पास आये, मुझे यूँ बुलाये,
खयालों में आके मुझे छेड़ जाए,
मुझे ये लगे जैसे तुम आ गयी हो

P.S. This is what I wrote a few years back. Posting on blog coz there hasn't been anything on it for a long time.